बीकानेर का इतिहास


 बीकानेर का इतिहास अपने आप में अनूठा है. के उत्तर पश्चिमी राज्य राजस्थान के थार रेगिस्तान के बीच बसा है यह शहर. इस शहर को राजस्थान का दिल भी कहते है. इस शहर पर कई राजा और महाराजाओं ने बीकानेर पर शासन किया है. इस शहर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहशहर अपनी परम्परा ओर सौहार्द के लिए पुरी दुनिया भर में जाना जाता है. ऐसे में अपनी गंगा-जमुना संस्कृति को दर्शाती इस शहर की आबों हवा भी ऐसी है जहां एक बार कोई आता है तो यहीं का होकर रह जाता है. यहां के नमकीन और मिठाई पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है

राव बीका (1465-1504 ई.) - 

  • जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के पुत्र राव बीका ने जांगल प्रदेश की ओर प्रस्थान कर करणी देवी के आशीर्वाद से अनेक छोटे-बड़े स्थानों एवं कबीलों को जीतकर जांगल प्रदेश में सन् 1465 में राठौड़ राजवंश की स्थापना की।
  • राव बीका ने 1488 ई. में बीकानेर नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
  • राव लूणकरण (1504-1526 ई.) -

    • राव लूणकरण को कलयुग का कर्ण भी कहते है (बीठू सूजा के ग्रंथ 'जैतसी रो छंद' में इस नाम से पुकारा गया)।
    • अपने बड़े भाई राव नरा की मृत्यु के बाद साहसी योद्धा राव लूणकरण बीकानेर गद्दी पर बैठे थे।
    • राव लूणकरण ने अपने पराक्रम से बीकानेर राज्य का पर्याप्त विस्तार किया तथा जैसलमेर नरेश रावल जैतसी को हराकर उन्हें समझौतों के लिए बाध्य किया।
    • सन् 1526 में नारनौल के नवाब के साथ युद्ध में धौंसा स्थान पर राव लूणकरण मारे गये।
    • राव लूणकरण की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राव जैतसी बीकानेर की गद्दी पर बैठे।

    राव जैतसी (1526-1542 ई.) -

    • राव जैतसी के समय बाबर के पुत्र व लाहौर के शासक कामरान ने भटनेर किले पर सन् 1534 के आसपास आक्रमण कर इसे अपने अधिकार में कर लिया। इसके बाद कामरान ने बीकानेर पर आक्रमण करने का प्रयास किया तथा एक बार तो उस पर कब्जा कर लिया परंतु राव जैतसी ने 26 अक्टूबर, 1534 को एक मजबूत सशक्त सेना एकत्रित कर कामरान पर आक्रमण कर दिया। जिससे मुगल सेना बीकानेर छोड़कर भाग चलीऔर राव जैतसी की विजय हुई। इस युद्ध का विस्तृत वर्णन वीठू सूजा के 'राव जैतसी रो छंद' ग्रंथ में मिलता है।
    • सन् 1541 ई. में पहोबा/साहेबा का युद्ध जोधपुर शासक राव मालदेव एवं बीकानेर शासक राव जैतसी के मध्य हुआ था, जिसमें राव जैतसी की मृत्यु हो गई और बीकानेर पर राव मालदेव का अधिकार हो गया।इस युद्ध के बाद जैतसी का पुत्र राव कल्याणमल शेरशाह की शरण में चला गया।
    • सन् 1544 ई. में शेरशाह सूरी ने मालदेव को गिरिसुमेल के युद्ध में हरा दिया, इसमें राव जैतसी के पुत्र कल्याणमल ने शेरशाह की सहायता की थी। शेरशाह ने बीकानेर का राज्य राव कल्याणमल को दे दिया।
    • राव कल्याणमल (1544-1574 ई.) -

      • राव मालदेव बीकानेर के पहले शासक थे, जिन्होंने सन् 1570 ई. को अकबर के नागौर दरबार में उपस्थित होकर मुगलों की अधीनता स्वीकार की एवं मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किये तथा अपने छोटे पुत्र पृथ्वीराज (अकबर के नवरत्नों में से एक) को अकबर की सेवा में छोड़ दिया। अकबर ने नागौर दरबार के बाद सन् 1572 ई. में राव कल्याणमल के पुत्र रायसिंह को जोधपुर की देखरेख के लिए नियुक्त कर दिया। सन् 1574 में राव कल्याणमल की मृत्यु हुई।

      बीकानेर के राजा रायसिंह (1574-1612 ई.) -

      • जब बीकानेर के राव कल्याणमल ने 1544 ई. में गिरि सुमेल के युद्ध  में जोधपुर के राव मालदेव के विरुद्ध शेरशाह सूरी की सहायता की थी। युद्ध जीतने के बाद शेरशाह ने बीकानेर राज्य राव कल्याणमल को सौंपा था।
      • 1570 ई. में सम्राट अकबर के नागौर दरबार में बीकानेर शासक राव कल्याणमल अपने पुत्र पृथ्वीराज एवं रायसिंह (राजपूताने का कर्ण) सहित नागौर दरबार में उपस्थित हुए तथा अकबर की अधीनता स्वीकार की। राव कल्याणमल अकबर (मुगलों) की अधीनता स्वीकार करने वाले बीकानेर रियासत के प्रथम शासक थे। रायसिंह अकबर के वीर, कार्यकुशल एवं राजनीति निपुण योद्धाओं में से एक थे। बहुत थोड़े समय में ही वे अकबर के अत्यधिक विश्वासपात्र बन गए थे। 
      • 1572 ई. में अकबर ने कुँवर रायसिंह को जोधपुर का प्रशासक नियुक्त किया। वहाँ उनका तीन वर्ष तक अधिकार रहा।
      • कठौली की लड़ाई (1573) : गुजरात के मिर्जा बंधुओं के विद्रोह का दमन करने हेतु भेजी गई शाही सेना में रायसिंह भी थे। इन्होने इब्राहीम हुसैन मिर्जा का पीछा करते हुए कठौली नामक स्थान पर घेर लिया, जहाँ वह पराजित होकर पंजाब की तरफ भाग गया।
      • जोधपुर के राव चन्द्रसेन के नागौर दरबार में मुगलों की अधीनता स्वीकार किये बिना वापस चले आने पर अकबर ने क्रोधित होकर जोधपुर एवं भद्राजूण पर आक्रमण कर दिया, जिससे जोधपुर व भाद्राजण पर मुगल सेना का अधिकार हो जाने के बाद राव चन्द्रसेन ने सिवाणा को अपना ठिकाना बना लिया था। सम्राट अकबर ने रायसिंह के नेतृत्व में सिवाणा के गढ़ पर अधिकार करने के लिए 1574 ईस्वी में अपनी सेना भेजी। सेना ने सोजत का किला जितने के बाद सिवाणा पर घेरा डाला। राव चंद्रसेन दुर्ग छोड़कर चले गए। बाद में शाहबाज खाँ के नेतृत्व में शाही सेना ने सिवाणा दुर्ग पर अधिकार किया।
      • देवड़ा सुरताण का दमन : 1576 ई. में जालौर के ताज खाँ एवं सिरोही के सुरताण देवड़ा के विद्रोह का दमन करने हेतु रायसिंह के नेतृत्व सेना भेजी गई। ताज खाँ व सुरताण ने रायसिंह के समक्ष उपस्थित होकर बादशाह की अधीनता स्वीकार कर ली। 
      • रायसिंह को अकबर द्वारा चारहजारी मनसबदारी प्राप्त हुई थी।
      • जहाँगीर के शासन में रायसिंह का मनसब 5 हजारी हो गया।
      • अकबर और जहाँगीर का विश्वासपात्र होने के कारण विशेष अवसरों रायसिंह की नियुक्ति दी की जाती थी तथा समय-समय पर उन्हें बादशाह की ओर से जागीरें भी प्रदान की गई।
      • मुंशी देवी प्रसाद ने महाराजा रायसिंह को 'राजपूताने का कर्ण' कहा है।
      • महाराजा रायसिंह ने बीकानेर में अपने मंत्री कर्मचंद की देर में 1589-94 में जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण कराया व 'रायसिंह प्रशस्ति' उत्कीर्ण करवाई।
      • महाराजा कर्णसिंह ( 1631-1669 ई.) -

        • कर्णसिंह अपने पिता सूरसिंह के देहावसान के बाद सन् 16311 में बीकानेर के सिंहासन पर बैठे।
        • महाराजा कर्णसिंह को अन्य शासकों ने 'जांगलधर बादशाह' की उपाधि से सम्मानित किया था।

        महाराजा अनूपसिंह (1669-1698 ई.) -

        • महाराजा अनूपसिंह द्वारा दक्षिण में मराठों के विरुद्ध की गई कार्यवाहियों से खुश होकर औरंगजेब ने इन्हें 'महाराजा' एवं 'माहीमरातिब' उपाधियों से सम्मानि किया।
        • महाराजा अनूपसिंह ने अनेक संस्कृत ग्रंथों अनूपविवेक, काम-प्रबोध, अनूपोदय आदि की रचना की। 
        • महाराजा अनूपसिंह के दरबारी विद्वानों ने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की थी इनमें मणिराम ने  'अनूप व्यवहार सागर' एवं 'अनूपविलास', अनंन भट्ट ने  'तीर्थ रत्नाकर' तथा संगीताचार्य भावभट्ट ने 'संगीत अनूपाकुंश', 'अनूप संगीत विलास', 'अनूप संगीत रत्नाकर' आदि प्रमुख ग्रंथों की रचना की।
        • दयालदास की 'बीकानेर रा राठौड़ा री ख्यात' में जोधपुर व बीकानेर के राठौड़ वंश का वर्णन है। 
        • तत्कालीन बीकानेर नरेश सूरतसिंह ने मार्च, 1818 में ईस्ट इंडिया कम्पनी से सुरक्षा संधि कर ली और राज्य में शांति व्यवस्था कायम करने में लग गये।

बीकानेर एक ऐसा शहर है जिसका निर्माण स्वयं एक विशाल किले के चारों ओर किया गया है। शहर में और उसके आस-पास के किले भव्य दृश्य बनाते हैं। वास्तुकला का चमत्कार होने के अलावा, ये संरचनाएं भूमि के समृद्ध इतिहास, यहां हुए विभिन्न युद्धों और क्षेत्र की रक्षा के लिए लड़ने वाले नायकों को दर्शाती हैं। अगली बार जब आप शहर में हों तो देखने के लिए हमने बीकानेर के किलों की एक सूची तैयार की है।

बीकानेर में किले

1. जूनागढ़ किला

जूनागढ़ किला

पूरे भारत में सबसे विशाल किलों में से एक, बीकानेर शहर का निर्माण जूनागढ़ किले के आसपास किया गया था। किला इतना विशाल है कि इसके परिसर में 37 मंडप हैं। इसका निर्माण 1593 में राजा राय सिंह द्वारा किया गया था, जो अपने परिवार के साथ लालगढ़ पैलेस में आये थे।

स्थापत्य शैली इंडो सारासेनिक है। किले ने विदेशी सेनाओं के अधिकांश आक्रमणों को झेला है। यहां तक ​​कि कामरान, एक विजेता, जिसने किले की घेराबंदी की थी, वह इसे वापस लेने से पहले केवल 24 घंटे तक ही कब्जा कर सका।

किले ने कई घेराबंदी और विजय के प्रयास देखे हैं। प्रसिद्ध विजेता अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती, जिनकी सुंदरता बेजोड़ थी, को पकड़ने के प्रयास में 1303 में किले की घेराबंदी की थी। चित्तौड़ के पुरुषों ने अपनी मृत्यु तक संघर्ष किया और महिलाओं ने आत्मदाह का कार्य किया।

  • किले का समय: सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक
  • किले का पता: चित्तौड़ किला रोड, चित्तौड़गढ़
  • 2.आमेर किला

    आमेर किला
  • आमेर किले का निर्माण कछवाहा वंश के शासक मान सिंह प्रथम ने मुगल सेना जनरल की मदद से किया था। यह किला गणेश पोल, जय मंदिर और सुख निवास जैसी शानदार संरचनाओं का दावा करता है। पूरा किला सुंदर बगीचों और बड़े कक्षों से युक्त है।

    आमेर किले की सभी संरचनाएँ समृद्धि और स्थापत्य प्रतिभा का प्रतिनिधित्व करती हैं। सुख निवास पैलेस की दीवारों के भीतर एयर कंडीशनिंग की नकल करते हुए पानी बहता है। शीश महल दर्पणों के विशाल संग्रह के लिए जाना जाता है।

  • 3. डूंडलोद किला

    डूंडलोद किला

    डूंडलोद किला

    डूंडलोद किला शेखावाटी क्षेत्र नवलगढ़ में स्थित है। इस किले का निर्माण वर्ष 1750 ई. में केसरी सिंह द्वारा करवाया गया था। किले की वास्तुकला राजपूताना और मुगल शैलियों का एक सुंदर मिश्रण है। किले के अंदरूनी भाग पारंपरिक राजस्थानी और यूरोपीय कला से सुसज्जित हैं।

    डूंडलोद नवलगढ़ से 7 किलोमीटर दूर शेखावाटी का एक खूबसूरत गांव है। डनलोद किले का निर्माण केसरी सिंह ने 1750 ई. में करवाया था। जबकि बाहरी हिस्से में वास्तुकला की राजपूत और मुगल शैली का मिश्रण है, किले के अंदरूनी हिस्से पारंपरिक राजस्थान और यूरोपीय कलाकृतियों का उपयोग करके बनाए गए हैं।

    • किले का समय: सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक
    • किले का पता: डुंडलोद, राजस्थान
    • चित्तौड़ का किला

      चित्तौड़ किला

      चित्तौड़ किला

      चित्तौड़ किला पूरे राजस्थान में सबसे प्रसिद्ध किला है। चित्तौड़ किला 700 एकड़ भूमि में फैला हुआ है और इसका इतिहास मौर्य साम्राज्य तक जाता है। बाद में राजस्थान के मेवाड़ों ने किले को अपना घर बनाया और कई पुनर्निर्माण किये।

      किले ने कई घेराबंदी और विजय के प्रयास देखे हैं। प्रसिद्ध विजेता अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती, जिनकी सुंदरता बेजोड़ थी, को पकड़ने के प्रयास में 1303 में किले की घेराबंदी की थी। चित्तौड़ के पुरुषों ने अपनी मृत्यु तक संघर्ष किया और महिलाओं ने आत्मदाह का कार्य किया।

      • किले का समय: सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक
      • किले का पता: चित्तौड़ किला रोड, चित्तौड़गढ़

      5. तारागढ़ किला

  • तारागढ़ किला

    तारागढ़ किला

    तारागढ़ किला

    तारागढ़ किले का निर्माण 1354 में एक विशाल पहाड़ी पर किया गया था। किले की अद्भुत वास्तुकला हर साल भारी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करती है। किले का निर्माण पहाड़ी पर कई स्तरों पर किया गया है, प्रत्येक भाग का अपना एक उद्देश्य है।

    इसमें छह द्वार और एक विशाल जलाशय है जो पूरी तरह से पत्थर से बना है। किले में गर्भ गुंजन नामक एक प्रसिद्ध तोप है।

    • किले का समय: सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक
    • किले का पता: नाहर का चौहट्टा, बूंदी

    बीकानेर का हर किला वीरता, वीरता और गौरव की शानदार कहानी कहता है। भले ही आप इतिहास के शौकीन न हों, लेकिन इन किलों की यात्रा आपको विस्मय की अनुभूति से भर देगी। तो आप किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं? बीकानेर के किलों की खोज के लिए एक मज़ेदार यात्रा की योजना बनाने का समय आ गया है।

  • Palaces inside Junagadh Fort, Bikaner

  • बीकानेर में स्थित जूनागढ़ का किला भी भव्यता की दृष्टि से इन किलों को कड़ी टक्कर दे सकता है पर फर्क सिर्फ इतना है कि जहाँ राजस्थान के बाकी किले पहाड़ियों पर बनाए गए हैं वहीं जूनागढ़ किला समतल भूमि पर बना है और बीकानेर शहर के बीचो बीच स्थित है। करीब एक किमी की परिधि में फैले इस किले के चारों ओर एक ज़माने में पतली सी खाई हुआ करती थी जो किले के चारों ओर शहर के विकास के साथ नष्ट हो गई। किला शत्रुओं के आक्रमण से बचने के लिए 12 मीटर ऊँची दीवारों  और 37 बुर्जों से सुसज्जित था। शायद यही वज़ह रही होगी कि इस पर हुए तमाम हमलों के बावज़ूद ये किला अभेद्य रहा। ।जिस तरह राव जोधा ने जोधपुर का मेहरानगढ़, राव जैसल ने जैसलमेर के सोनार किले का निर्माण करवाया वैसे आप ये ना समझ लीजिएगा कि राव बीका ने बीकानेर के जूनागढ़ के किले को बनवाया होगा। दरअसल राव बीका इतने भाग्यशाली नहीं थे। जोधपुर के राठौड़ नरेश राव जोधा के दूसरे पुत्र होने के कारण उन्हें जोधपुर की गद्दी नहीं मिल सकती थी। सो उन्होंने जोधपुर के उत्तर पश्चिम में अपना साम्राज्य स्थापित करने का फैसला किया। 1472 ई में जूनागढ़ किले के कुछ दूर उन्होंने पत्थर का एक किला बनवाया । यही वज़ह है कि ये शहर तो उनके नाम हो गया पर इस किले की नींव रखने में उनका कोई हाथ नहीं रहा।बीकानेर के राजाओं की किस्मत सौ वर्षों बाद राजा राय सिंह के नेतृत्व में जागी जो मुगल सेना के अग्रणी सेनापति थे। मुगल सम्राट अकबर और फिर जहाँगीर के रहते उन्होंने मेवाड़ को अपने  कब्जे में लिया जिससे खुश हो कर गुजरात और बुरहनपुर की जागीरदारी उनको थमा दी गई। इससे जो पैसा बीकानेर आया वो जूनागढ़ के इस किले के निर्माण में काम आया। 1584 ई.में निर्मित इस किले को बनाने में पाँच साल लगे। बीकानेर के अन्य राजाओं ने कालांतर में इसका विस्तार किया। बीकानेर का ये किला अंदरुनी साज सज्जा और बाहरी मुगलकालीन स्थापत्य के लिए जाना जाता है।किले के अहाते में पहुँचने के बाद सबसे पहले हम पहुँचे करन महल के पास।  ये महल करन सिंह ने मुगल सम्राट औरंगजेब पर जीत की खुशी में बनाया था। बरामदे पर मुगल शैली की छाप स्पष्ट दिखाई देती है।
  • ब्रिटिश शासन काल में बीकानेर के सबसे लोकप्रिय शासको में गंगा सिंह का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उन्होंने गंगा महल का निर्माण कराया जो आज एक संग्रहालय में तब्दील हो गया है। पर स्थापत्य की दृष्टि से उनका बनाया दरबार हाल एक ही नज़र में अपनी बड़ी बड़ी मेहराबों और दीवारों पर उत्कीर्ण नक्काशी से अपना ध्यान आकर्षित करता है।
  • किले में इसके आलावा गज मंदिर, चंद्र महल, सुर महल और डूंगर निवास जैसी खूबसूरत इमारतें भी हैं। सभी महलों में शीशे बड़े अछे ढंग से लगे दिखाए देते हैं। इसकी वज़ह ये थी कि राजा किसी भी कोण से आने वाले दुश्मन के प्रति पहले से ही सजग हो जाएँ। बीकानेर के शासकों के रहन सहन, उनके द्वारा उस ज़माने में प्रयुक्त वस्तुओं और उनके शस्त्रों को बड़े करने से यहाँ के संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।  को विभिन्न प्रकार की चीजों और असंख्य बाजारों से जोड़ना पसंद करेगा - 
  • बीकानेर में खरीदने योग्य चीज़ें

  • बीकानेर एक खरीदार का स्वर्ग! यहां कुछ चीजें हैं (और वे स्थान जहां से उन्हें खरीदा जा सकता है) जो इस खूबसूरत गंतव्य से वापस आने पर आपके साथ होनी चाहिए:
  • कुन्दन आभूषण

    कुन्दन ज्वैलरी, बीकानेर में खरीदारी
    स्रोत

    बीकानेर मूल और कृत्रिम दोनों तरह के कुंदन आभूषणों का केंद्र है। हालाँकि वैश्वीकरण, प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के आगमन के साथ, आप लगभग हर जगह सब कुछ खरीद सकते हैं और ऑनलाइन खरीदारी भी कर सकते हैं, फिर भी यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि कुंदन आभूषण विशेष रूप से बीकानेर में निर्मित होते हैं। डिज़ाइन हस्तनिर्मित हैं और आपको लुभाने में कभी असफल नहीं होंगे। लेकिन, असली कुंदन आभूषण 24 कैरेट सोने से बना है - जो उपलब्ध सोने का सबसे शुद्ध रूप है। असली चीज़ खरीदने से आपकी जेब पर भारी बोझ पड़ेगा। हालाँकि, कृत्रिम कुंदन आभूषण, जिसकी कीमत मूल से बहुत कम है, असली आभूषणों की तरह ही सुंदर है। इसलिए जब आप बीकानेर जाएं तो कुंदन के आभूषण खरीदना न भूलें।
  • साड़ी

    साड़ियाँ, बीकानेर में खरीदारी
    स्रोत

    यदि आपके पास आभूषण हैं, तो आपके पास भारतीय लुक के लिए एक (या कई!) देसी पोशाकें होनी चाहिए। विभिन्न प्रकार की साड़ियों और लहंगों के लिए बीकानेर जाएँ। साड़ी की अधिक प्रसिद्ध किस्मों में लहरिया शामिल है - जीवंत और हल्की, पार्टी के लिए बिल्कुल उपयुक्त। अन्य नामों में बंधनी, सांगानेरिया और घरचोला शामिल हैं। अगर आप हल्की, कैरी करने में आसान साड़ी में शाही लुक चाहती हैं, तो घरचोला आपके लिए है। पूरे डिज़ाइन में क्रिस-क्रॉस सोने की रेखाएं आपको परेशानी मुक्त, रानी जैसा लुक पाने में मदद करेंगी!

    चूड़ियाँ

    चूड़ियाँ

    बीकानेर यह सुनिश्चित करेगा कि आपको देसी लुक पाने के लिए हर चीज़ मिले। यदि आप कुंदन चूड़ियों के अलावा कुछ और चाहते हैं, तो शहर आपको ऐसा प्रदान करेगा। हालाँकि जयपुर में चूड़ी बाज़ार उतना विविधतापूर्ण नहीं है , फिर भी आप निराश नहीं होंगे। लगभग हर किस्म की रंगीन, जीवंत चूड़ियाँ आपकी खरीदारी सूची में जगह बना लेंगी।
  • नोखारजाई
    यहां खरीदें: LabujiKaKatla मार्केट।
    हल्की और बेहद गर्म, नोखारजाई (या रजाई) बीकानेर की एक अविश्वसनीय विशेषता है। यह बीकानेर के कई बेहतरीन शॉपिंग स्थानों पर पाया जाता है, यह पास के नोखा नामक एक छोटे शहर में बनाया जाता है। इसके कारण नाम। सस्ती दरों पर उपलब्ध, यह अद्वितीय डिज़ाइन में आता है और हल्की सर्दियों के लिए आदर्श है। उपरोक्त बाजार के अलावा कोटे गेट बीकानेर खरीदारी के लिए एक बेहतरीन जगह है।

  • ऊँट के चमड़े की मोजरी
    यहां खरीदें: केईएम रोड पर बाजार।
    स्थानीय रूप से मोजरी कहे जाने वाले, ऊंट के चमड़े के जूते बीकानेर में अवश्य खरीदने चाहिए। ये पैरों के लिए मुलायम होते हैं और उपयोग में आसान होते हैं। इन्हें जींस और सलवार से लेकर अन्य भारतीय सूट तक हर चीज के साथ जोड़ा जा सकता है। साथ ही, इन्हें काफी सस्ते दामों पर खरीदा जा सकता है। तो, आगे बढ़ें और बीकानेर के सर्वोत्तम शॉपिंग स्थानों पर जितनी चाहें उतनी खरीदारी करें!

    चूरन
    यहां खरीदें:  बड़ा बाज़ार, पुराना बीकानेर।
    हम शर्त लगाते हैं कि आपने कभी नहीं सोचा होगा कि बीकानेर के सर्वोत्तम शॉपिंग स्थानों पर अवश्य खरीदी जाने वाली वस्तुओं की हमारी सूची में पाचन संबंधी सहायता भी शामिल होगी। हालाँकि, बीकानेर नाजुक पेट वाले लोगों की मदद के लिए चूरन की विशाल विविधता के लिए प्रसिद्ध है। भले ही आप सभी प्रकार के भोजन को संभाल सकते हैं, हम अनुशंसा करते हैं कि आप इनमें से कुछ को उनके शुद्ध स्वाद के लिए खरीद लें। किस्मों में अनार, आम, लहसुन, नींबू, अदरक और बहुत कुछ शामिल हैं।

    बीकानेर भुजिया
    यहां खरीदें:  खजांची बाजार और रानी बाजार।
    बीकानेर की प्रसिद्ध मिठाइयों और अन्य व्यंजनों के साथ-साथ अति-स्वादिष्ट बीकानेर भुजिया का स्वाद लेना न भूलें। पिसी हुई मोठ की दाल से बना, जो केवल बीकानेर के खेतों में पाई जाती है, यह स्वादिष्ट नाश्ता ऐसा है जो आपने पहले कभी नहीं खाया होगा। इसकी शेल्फ लाइफ लंबी है और कई दुकान मालिक खरीदने से पहले आपको इसकी विभिन्न किस्मों का स्वाद चखने देंगे। बीकानेर में सबसे अच्छे शॉपिंग स्थानों में से कोई भी आपको यह बेचेगा।






टिप्पणियाँ